आज का जीवन मंत्र:जब भी कोई बड़ा काम करना हो तो उसका आरंभ और अंत बुद्धिमानी से करना चाहिए

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कहानी – देवताओं और दानवों को मिलकर समुद्र मंथन करना था। उस समय ये समस्या आई कि समुद्र को कैसे मथा जाए? उसके लिए कोई बहुत बड़ी मथनी चाहिए। तब सभी को मंदराचल पर्वत को मथनी बनाने का विचार आया।

अब इतने बड़े पर्वत को समुद्र में लाकर कैसे रखें? तब ये जिम्मेदारी भगवान विष्णु ने उठाई। उन्होंने गरुड़ की पीठ पर पर्वत को रखा और पर्वत पर स्वयं बैठ गए। वे पर्वत को लेकर उस जगह पहुंच गए, जहां मंथन होना था।

समुद्र में पर्वत रखने के बाद विष्णुजी ने गरुड़ से कहा, ‘अब तुम जाओ, क्योंकि तुम यहां रहोगे तो वासुकी नाग यहां नहीं आएगा। वासुकी नाग की रस्सी बनाकर मंथन करना है।’

गरुड़ के जाने के बाद विष्णुजी ने कच्छप अवतार लिया और अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को रखा। इसके बाद देवताओं और दानवों ने वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन किया।

मंथन से 14 दिव्य रत्न निकले। मंथन पूरा होने के बाद भगवान विष्णु ने अभियान में शामिल हुए सभी देवताओं, दानवों, मंदराचल पर्वत, वासुकी नाग आदि को विदा किया, क्योंकि ये पूरी योजना विष्णुजी ने ही बनाई थी।

विष्णुजी ने कच्छप अवतार लिया, मोहनी अवतार लेकर दानवों को पीछे करके देवताओं को अमृत पान कराया। सभी काम विष्णुजी ने ही किए थे। किसी ने विष्णुजी से पूछा, ‘काम पूरा हो गया था तो ये सभी अपने-अपने हिसाब से चले जाते। आप सभी को विदा क्यों कर रहे हैं?’

विष्णुजी बोले, ‘जब समुद्र मंथन जैसा बड़ा अभियान होता है तो वह काम कोई एक व्यक्ति या कोई एक समूह नहीं कर सकता है। ऐसे काम में बहुत से लोगों का उपयोग करना होता है। विपरीत विचारधारा के लोगों को भी जोड़ना पड़ता है, इसीलिए देवताओं और दानवों को इस काम में साथ जोड़ा। गरुड़ को लेकर आए और वासुकी नाग से पहले उन्हें विदा किया। इसके बाद सभी को ससम्मान विदा किया। बड़े काम के आरंभ में और अंत में बहुत बुद्धिमानी से सभी बातें संभालनी चाहिए। तभी ऐसे अभियान सफल हो पाते हैं।’

सीख – बड़े काम के आरंभ में काफी लोगों को जोड़ना पड़ता है और जब काम पूरा हो जाए तो उन्हें सही तरीके से विदा भी करना चाहिए। जिन लोगों की मदद से हमारा काम पूरा हुआ है, उनका मान-सम्मान जरूर करें।

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