Synopsis
सरहन्द दीवारों की गाथा – Patriotic Poems Brave Kids
सरहन्द दीवारों की गाथा
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा,अन्धकार काली रात का।
माँ भारती के सीने मे ं,वो सच्च में वज्र घात था । ।
ज़िन्दा चुनें दीवार में ,दो सिंह वो दशमेश के ।
घुटनों तक पहुँची ईंट हर, गिरती थी उनके वेग से ।
घुटनों की काटी चपनियां ,नबाब वो कमजात था ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
उठती हुई दीवार का, था खेल काला चल रहा ।
सिंहों के छाती वेग से,दीवार गिरी भरभरा ।
दशमेश के सिंह शावकों का,सीना था आकाश सा ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
दीवार गिरती चरणों में, सिंहों से माफ़ी माँगती ।
यही अदा दीवार की,नबाब को थी सालती।
नूरानी चेहरा लालों का,नबाब को अभिशाप था ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
दीवार ठहर ना सकी,हुक्म नबाब ने दिया ।
नन्हे सिंह शावकों को ,टुकड़े-टुकड़े कर दिया ।
आकाश रोया जार-जार, ये ऐसा महापाप था ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
ज़ुल्म था अपनी जगह,धर्म भी डटा रहा ।
इक बनिये टोडर मल ने, राह अपना चुन लिया ।
गुरू पुत्रों के सम्मान का, उसका इरादा साफ़ था ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
संस्कार हो सम्मान से,अशर्फ़ी से नापी थी धरा ।
गुरू के अर्पण कर दिया, जो भी गुरू से था मिला ।
धर्म ध्वजा ऊँची रही,झण्डा झुका था पाप का ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
अशर्फ़ियाँ अनमोल भी,धर्म पर निहाल थी ।
नहीं दुनियाँ में बराबरी, कोई इस मिसाल की ।
मसला ये दर्द बन गया, नबाब के दिन रात का ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
वो मेहरा मोती लाल तो, नौकर था नबाब का ।
माँ गुज़री को ठण्डे बुर्ज में, ला दूध था पिला रहा ।
धर्म मार्ग चलने पर,उसे डर न था नबाब का । ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
न धर्म भटका राह से,ज़ुल्म भी था न थमा ।
वंश मोती लाल का ,था कोल्हू में पिड़वा दिया ।
धर्म हेतु मिटने का,था सिलसिला जज़्बात का ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
बलिदान नन्हें सिंहों का,गाथा ये अपनी लिख गया ।
आभारी है माँ भारती,ये धर्म अपना बच गया ।
ये क़िस्सा गुरू के लालों का ,और उनकी करामात का । ।
थी ज़ुल्म की वो इन्तहा———–।
– रजिन्द्र बंसल अबोहर ।
सरहन्द दीवारों की गाथा – Patriotic Poems Brave Kids