क्या-क्या किया और क्या-क्या कराया – Poem on Selfishness

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Poem On Labor
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Poem on Selfishness

सम्पूर्ण  जीवन  संघर्ष  की  मांग  करता  है . जिन्हें  सबकुछ  बैठे -बैठे  मिल  जाता  है वो  आलसी , स्वार्थी  और  जीवन  के  वास्तविक  मूल्यों  के  प्रति  असंवेदनशील  हो  जाते  हैं .   अथक  प्रयास  और  कठिन  परिश्रम   जिससे  हम  बचने  की  कोशिश  करते  हैं  दरअसल  यही हम सब को सर्वोत्तम बनाता है ।

आज सभी को इस वास्तिवक्ता से अंजान नहीं रहना चहिये। और खुद भविस्य के लिए तैयार करना चहिये।

क्या-क्या किया और क्या-क्या कराया – Poem on Selfishness

क्या-क्या किया और क्या-क्या कराया


क्या-क्या किया और क्या-क्या कराया
इस लाइफ ने बड़ा सताया-बड़ा सताया
दिन मुझको औकात, दिखाने वाले आ गए,,,
 पाँव में छाले आ गए, पाँव में छाले आ गए…
 
गाड़ी थी, घोड़ा था, पैसा भी थोड़ा था.
 कितना खर्च किया, ये कभी न जोड़ा था.
 दिन अब खर्चा-पानी, जुड़वाने वाले आ गए,,,
 पाँव में छाले आ गए, पाँव में छाले आ गए…
 
कभी जीत थी, हाँथों से धनता बरसी थी.
 गरीबी के प्रति, न दिल में कभी मर्सी थी.
 देखो अभी अपने ही, रोटी के लाले आ गए,,,
 पाँव में छाले आ गए, पाँव में छाले आ गए…
 
मयखाने के रस्ते पर, मिला एक मंदिर था.
 मुंह फेर के पहुंचा, जहां मय-मंदिर था.
 अब तो अपने दिन, मंदिर जाने वाले आ गए,,,
 पाँव में छाले आ गए, पाँव में छाले आ गए
 
कुकर्म-अधर्मता, विनाश का बोधक है.
 अहम् है जैसे जहर, समानता मोदक है.
 इसको समझे, समझ सबसे बड़ा शोधक है.
 सारा जग बोलेगा की, गुरु तुम तो छा गए,,,
 पाँव में छाले आ गए, पाँव में छाले आ गए…
 
-लेखराज

क्या-क्या किया और क्या-क्या कराया – Poem on Selfishness


Poem On Selfishness - क्या-क्या किया और क्या-क्या कराया