Synopsis
Social Issues Poems – सड़क पर एक अकेली लडकी
सड़क पर एक अकेली लडकी
सड़क पर एक अकेली लडकी
इतनी असुरक्षित कभी न थी
जितनी आज है
सभ्यता जिसने दुनिया को सिखलाई
उस भारत को महान कहने में अब
आने लगी लाज है
सड़क पर एक अकेली लडकी
इतनी असुरक्षित कभी न थी
जितनी आज है
जिस मिट्टी से संत और शूरमा पैदा होते थे
कुछ कीड़े अब उसमे गंध फैलाते हैं
सफाया इनका मिलकर करना है
जरूरी अब एक जंग निर्णायक है
बच्चा हो या बूढा हो,
अपराधी तो अपराधी है
दया नहीं दंड के लायक है
क्यों बिना किसी गलती के
खतरे में नारी लाज है
सड़क पर एक अकेली लडकी
इतनी असुरक्षित कभी न थी
जितनी आज है
परिवार समाज और शिक्षा
कभी चरित्र का पाठ पढ़ाते थे
नारी पर ही समाज टिका हुआ है
उसकी सुरक्षा करना सिखलाते थे
देखो अपना दायित्व न भूलो
बहिष्कार करो उन लोगो का
जो हमारे समाज में गंदगी फैलाते हैं
चिल्लाकर कहे हर भारत वासी उनसे
मुझे इससे एतराज़ है
सड़क पर एक अकेली लडकी
इतनी असुरक्षित कभी न थी
जितनी आज है
– कवि रजनीश
Social Issues Poems – सड़क पर एक अकेली लडकी