Poem on Desh Prem in hindi – Jai Hind Ki Sena

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Poem on Desh Prem

1 Poem on Desh Prem in hindi – Jai Hind Ki Sena

Desh Ki Sena

Poem on Desh Prem in hindi :

सचमुच! देश व समाज हमें इतना कुछ देता है कि हम ताउम्र उसकी सेवा करें तो कम है। लेकिन आज विडंबना यह है कि देशप्रेम, देशभक्ति या देशसेवा जैसे शब्द जेहन में आते ही सबसे पहले जो छवि सामने आती है वो है एक सैनिक की।

यानी जब भी देशसेवा का जिक्र हो तो उसका सीधा सा अर्थ आम नागरिक सेना के जवान से ही लेता है। ये सही है कि सैनिक देश की सेवा करते हैं वे सीमा प्रहरी भी हैं।  

लेकिन ये भी सही है कि हममें से प्रत्येक नागरिक किसी न किसी रूप में, प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से देश की सेवा कर सकता है, यदि वह चाहे तो। उदाहरण के लिए देश की उन्नति में सबसे बड़ी बाधक सुरसा के मुख की तरह फैलती जनसंख्‍या पर नियंत्रण करना भी देश की सबसे बड़ी सेवा होगी, जिसके बारे में हर राष्ट्र हितैषी सोच सकता है। 

Jai Hind Ki Sena



जिंदगी जब  थम गयी प्रकृति के प्रभाव में
रोशनी  तब छिप गयी इन पर्वतो की छाव में
जब कोई  भी हाथ आगे रासता न दे सके तब
सेना ही  मरहम बनी हर जख्म  और हर घाव में
 
 
आरोपों  से भरा संवाद पूर्ण साशन नहीं
पहुंचानी  हे मदद देना कोई भाषण नहीं
क्षण भर  की  देर से कोई श्वास टूट सकती हे
यहाँ  प्रकृति का एक छत्र राज चलता हे
अपने सुस्त लोकतंत्र सा साशन नहीं
 
 
अविलम्ब  सक्रिय सेवा और सावधानी पूर्ण  मदद की हे तो किसने –
भारतीय  सेना के जवानो ने !
निडर  निर्भीक हो निरंतर  पुनर्निर्माण की  नीव रखी हे तो किसने
भारतीय  सेना के जवानो ने !
 
इनमे से  कई फौजी कितने दिनों से नहीं सोये हे
पुछा तो ज्ञात हुआ  उनके भी अपने यही कही खोये हे
जिसके हाथ  पीले अभी हुए थे , ग़मगीन हे वो भी
मदद  में अपना हाथ सबको अपना समझ के देता हे
तो  पहचान जाना के वो वीर भारत मत का ही बेटा  हे
 
 
हे  नाथ ! केदार ,
हे  शिव शम्भो !
आप  विध्वंसक, आप प्रलयंकर
आप नियंत्रक ,आप तीर्थंकर
ऐसे  विनाश की पुनरावृति ना   होने देना
प्रकृति को ऐसे अनियंत्रित अब कभी ना होने देना
 
–        कृष्ण कांत शर्मा

1 Poem on Desh Prem in hindi – Jai Hind Ki Sena


Poem on Desh Prem in hindi - Jai Hind Ki Sena

Patriotic Poems More

नन्हा मुंहा राही हूँ

नन्हा मुंहा राही हूँ
देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग जय हिन्द जय हिन्द
जय हिन्द जय हिन्द

नन्हा मुंहा राही हूँ
देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग जय हिन्द जय हिन्द
जय हिन्द जय हिन्द

रस्ते पे मैं चलूंगा न डर , डर के
चाहे मुझे जीना पड़े मर , मर के
मंज़िल से पहले न लूँगा कही दम
आगे ही आगे बढ़ाऊंगा कदम
दाहिने बाई दाहीने बाई थुप

नन्हा मुंहा राही हूँ
देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग जय हिन्द जय हिन्द
जय हिन्द जय हिन्द

हम होंगे कामयाब

होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन

होंगी शांति चारो ओर
होंगी शांति चारो ओर
होंगी शांति चारो ओर एक दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
होंगी शांति चारो ओर एक दिन

हम चलेंगे साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन

नहीं डर किसी का आज
नहीं भय किसी का आज
नहीं डर किसी का आज के दिन
हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
नहीं डर किसी का आज के दिन

हम होंगे कामयाब एक दिन

– गिरिजा कुमार माथुर

ऐ मेरे वतन के लोगों

ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने हैं प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो -२
जो लौट के घर न आये -२

ऐ मेरे वतन के लोगों
ज़रा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

जब घायल हुआ हिमालय
खतरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी साँस लड़े वो
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा
सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वत पर
वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

थी खून से लथ-पथ काया
फिर भी बन्दूक उठाके
दस-दस को एक ने मारा
फिर गिर गये होश गँवा के
जब अन्त-समय आया तो
कह गये के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

तुम भूल न जाओ उनको
इसलिये कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुरबानी

जय हिन्द…
जय हिन्द की सेना -२
जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द

देश के सैनिकों से

कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला,
स्वतंत्र हो कदम न चार था चला,
कि एक आ खड़ी हुई नई बला,
परंतु वीर
हार मानते
कभी?

निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
जगत प्रसिद्ध,
शूर सिद्ध
तुम सभी।

जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
तजो न
सूचिकाग्र भूमि-
भाग भी।

– हरिवंशराय बच्चन

सरफ़रोशी की तमन्ना

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है

यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,

हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,

है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,

हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,

-राम प्रसाद बिस्मिल

आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की

आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम …

उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है
जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है
बाट-बाट पे हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है
देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की,
इस मिट्टी से …

ये है अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे
इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे
ये प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्‍मिनियाँ अंगारों पे
बोल रही है कण कण से कुरबानी राजस्थान की
इस मिट्टी से …

देखो मुल्क मराठों का ये यहाँ शिवाजी डोला था
मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था
हर पावत पे आग लगी थी हर पत्थर एक शोला था
बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था
यहाँ शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की
इस मिट्टी से …

– कवि प्रदीप

जलियाँ वाला बाग ये देखो यहाँ चली थी गोलियाँ
ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियाँ
मरनेवाले बोल रहे थे इनक़लाब की बोलियाँ
यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जान की
इस मिट्टी से …

ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है
यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है
ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है
जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की
इस मिट्टी से …

ये देश है वीर जवानों का

ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का
ओ…
ओ…

ये देश है वीर जवानों का
अलबेलों का मस्तानों का
इस देश का यारों … होय!!
इस देश का यारों क्या कहना
ये देश है दुनिया का गहना

ओ… ओ…
यहाँ चौड़ी छाती वीरों की
यहाँ भोली शक्लें हीरों की
यहाँ गाते हैं राँझे … होय!!
यहाँ गाते हैं राँझे मस्ती में
मस्ती में झूमें बस्ती में

ओ… ओ…
पेड़ों में बहारें झूलों की
राहों में कतारें फूलों की
यहाँ हँसता है सावन … होय!!
यहाँ हँसता है सावन बालों में
खिलती हैं कलियाँ गालों में

ओ… ओ…
कहीं दंगल शोख जवानों के
कहीं करतब तीर कमानों के
यहाँ नित नित मेले … होय!!
यहाँ नित नित मेले सजते हैं
नित ढोल और ताशे बजते हैं

ओ… ओ…
दिलबर के लिये दिलदार हैं हम
दुश्मन के लिये तलवार हैं हम
मैदाँ में अगर हम … होय!!
मैदाँ में अगर हम डट जाएँ
मुश्किल है के पीछे हट जाएँ

– साहिर लुधियानवी